Sunday, June 12, 2016

आपका जीवन साथी कैसा होगा तो कुण्डली से आपको इसका उत्तर मिल सकता है

विवाह संस्कार से न केवल स्त्री और पुरूष का मिलन होता है, बल्कि एक नई जिन्दगी का आगाज़ भी होता है। वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है कि आपका #जीवनसाथी आपके अनुकूल हो। अगर आप जानना चाहते हैं कि आपका जीवन साथी कैसा होगा तो कुण्डली से आपको इसका उत्तर मिल सकता है।
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Saturday, May 28, 2016

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कुंडली परामर्श : अपनी जन्म कुंडली में उपस्थित अच्छे-बुरे योगों तथा दोषों के बारे में सही जानकारी प्राप्त कीजिए तथा इन योगों-दोषों से होने वाले लाभ-हानि के बारे में भी जानिए। साथ ही अपनी जन्म कुंडली में उपस्थित दोषों के निवारण के उपाय भी जानिए।
शुभ रत्न : अपने लिए शुभ रत्नों के बारे में जानिए तथा इन रत्नों को पहन कर अपने जीवन के बहुत से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने की संभावनाएं ब
ढाएं।
आपके मंत्र : अपने लिए शुभ मंत्रों के बारे में जानिए तथा इन मंत्रों के माध्यम से अपने जीवन के बहुत से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने की संभावनाएं बढाएं।
आपके यंत्र : अपने लिए शुभ यंत्रों के बारे में जानिए तथा इन यंत्रों के माध्यम से अपने जीवन के बहुत से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने की संभावनाएं बढाएं।
आपका व्यवसाय : अपने लिए लाभदायक व्यवसाय के बारे में जानिए तथा इनमें सफलता प्राप्त करने के उपाय जानिए।
कुंडली मिलान : अपने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली मिलान करवायें तथा इस मिलान के आधार पर जानिए कि आपकी शादी किन क्षेत्रों में अच्छी एवम किनमें ख्रराब रह सकती है। अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए कुंडली मिलान में उपस्थित दोषों के निवारण जानिए तथा साथ ही गुण मिलान में आने वाले दोषों, जैसे कि नाड़ी दोष, भकूट दोष आदि के निवारण भी जानिए।
शादी संबंधित समस्याएं : क्या आपकी शादी में अनावश्यक रूप से देरी हो रही है या आपके वैवाहिक जीवन में खुशियां कम और समस्याएं अधिक हैं। अपनी कुंडली का अध्ययन करवाएं तथा आपके वैवाहिक सुख को कम करने वाले दोषों के निवारण जानिए।
अन्य समस्याएं : उपरोक्त समस्याओं के अतिरिक्त किसी भी अन्य समस्या या दोष जैसे कि पित्र दोष, मांगलिक दोष, काल सर्प दोष, गंड मूल दोष आदि के निवारण प्राप्त करें।
विशेष !!
परामर्श का समय देय राशि खाते में आने के बाद ही दिया जाएगा।  परामर्श केवल फोन के द्वारा या व्यक्तिगत रूप से ही दिया जाता है! अभी संपर्क करें +91- 9977704380


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Friday, August 21, 2015

कुंडली ज्योतिष

यह कुंडली पर आधारित विद्या है। इसके तीन भाग है- सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इस विद्या के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर जातक का भविष्य बताया जाता है। उक्त विद्या को बहुत से भागों में विभक्त किया गया है, लेकिन आधुनिक दौर में मुख्यत: चार माने जाते हैं। ये चार निम्न हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या।

गुण मिलाप – कुंडली मिलाप

यह अक्सर कहा जाता है कि विपरित चीजें आकर्षित होती है लेकिन क्या यह मनुष्यों पर भी लागू होता है? यदि स्वर्ग में हलचल हो तो क्या होगा? जीवन हमेशा सुखो से भरा हुआ नहीं होता है। ज्योतिषीय फलकथन केवल भविष्य का फनकथन नहीं है। कुंडली मनुष्य के स्वभाव, उसकी पसन्द और नापसन्द, सामाजिक व्यवहार की कुशलताएं और उसके व्यवहार करने के तरीके के बारे में भी बताती है। भारतीय समाज में विवाह को जन्मों का संबंध माना जाता है। संभावित दूल्हा और दुल्हन के मध्य संवादिता सुनिश्चित करने के लिये उनकी कुडली का मिलान करना ही एक विकल्प है। विवाह के बाद युगल एक दूसरे को प्रभावित करते हैं और उनकी कुंडली का सम्मिलित असर उनके भविष्य पर होता है। एक बार विवाह हो जाये उसके पश्चात उनकी कुडली जीवन भर के लिये उनके भविष्य और जीवनप्रणली को सामुहिक रूप से प्रभावित करती है। 

सामान्यतः उत्तर और दक्षिण भारत में कुंडली मिलाने का तरीका एक जैसा है। फिर भी कुछ बातें दक्षिण भारत में थोड़ी अलग हैं। कुंडली मिलाते समय आठ मुख्य चीजें उत्तर और दक्षिण भारत में एक सामान रूप से देखी जाती हैं । ये हैं-
  1. वर्ण
  2. वश्य
  3. तारा या दिन
  4. योनि
  1. ग्रह मैत्री
  2. गण
  3. भकुट
  4. नाड़ि
 
हर घटक को एक निश्चित अंक दिया गया है जो इस तरह हैं-
वर्ण को1 अंक , वैश्य को 2, दिन को 3, योनी को 4, ग्रह मैत्री को 5, गण को 6, भकूट को 7 और नाड़ी को 8 अंक दिया गया है । सबका जोड़ कुल 36 अंक होते हैं। 

इस मानदंड के आधार पर, दो संभावित लोगों की कुंडली को मिलाना और उसके फल की गणना करना ही गुण मिलान – कहलाता है.
36 में 18 अंक 50 % हुआ जिसे औसत माना जाता है और 28 अंक मिले तो संतोषजनक मानते हैं। कुंडली मिलाने के समय कम से कम 18 अंक मिलने चाहिए। 

यदि होनेवाले दूल्हा दुल्हन एक ही नाड़ी के हों तो यह नाड़ी दोष कहलाता है। उदहारण के लिए, यदि दोनों की मध्य नाड़ी हो तो इस नाड़ी दोष से बच्चे के जन्म में समस्या आती है। इस तरह के मामले में बच्चे के जन्म की सम्भावना नहीं के बराबर रहती है। इसमें शामिल युगल का रक्त समूह से सीधा संबंध रहता है। 

यह एक गहन अध्ययन का विषय है और संवादिता की गणना के दौरान केवल इन्ही कारकों को क्यों देखा गया । फिर भी इसकी वैधता पर सवाल नहीं किये जा सकते। उदहारण के लिए, यदि लड़की श्वान योनी (श्वान -कुत्ता) में पैदा हुई और लड़का मंजर योनी (मंजर- बिल्ली) का है, तो ऐसी स्थिति में लड़की हमेशा लड़के पर हावी रहेगी। यह भविष्यवाणी कुत्ता बिल्ली के स्वाभाव के आधार पर की जा सकती है। 

पूरे भारत में कुंडली मिलाते समय मंगल दोष को गंभीरता से लिया जाता है जबकि ज्योतिषी शनि दोष को उतना गंभीर नहीं मानते हैं। कुंडली मिलाते समय राशि यानि चन्द्र राशि का सही तरीके से मिलान और उसके फल पर विचार करना चाहिए। कुंडली मिलाते समय लग्न का भी उतना ही महत्त्व है। 
दक्षिण भारत में कुंडली मिलाते समय इन 10 कारकों पर विचार किया जाता है-
  1. धिना- सितारों के आधार पर होनेवाले दूल्हा दुल्हन के दापंत्य जीवन की आयु के आधार पर गणना की जाती है।
  2. गण – सुखी जीवन और सामान्य भलाई का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. महेंद्र- बच्चे के जन्म की संभावना से संबंधित है।
  4. स्त्री दीर्घा-यह भी सुखी और सामान्य जीवन के लिए होता है।
  5. योनी-आनंददायक और संतुलित वैवाहिक जीवन के लिए देखा जाता है।
  6. राशि-यह संतान तथा उनकी खुशी के लिए होता है।
  7. रहस्याधिपति- यह भी वंश और धन के बारे में होता है।
  8. वैस्य- यह विवाह से मिलने वाले प्यार और खुशियों के लिए होता है।
  9. रज्जू- यह लम्बे वैवाहिक जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण है और साथ ही साथ दूल्हा दुल्हन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  10. वेधई -यदि वेधई शून्य हो तो वैवाहिक जीवन, सभी तरह की विपदाओं से बचा रहता है।
कुंडली मिलान और गुण गणना भारत में बहुत प्रचलित प्रथा है। यहां सामान्य लोग जानते हैं की वैवाहिक बंधन में बंधने के लिए कितने गुणों की आवश्यकता होती है। कुछ ज्योतिषी कुंडली मिलाने के परंपरागत तरीकों का ही अनुसरण करते हैं। गणेशजी कुंडली मिलाने के दौरान पाश्चात्य ज्योतिषिय अवधारणाओं पर अमल करते हैं।
यह तरीका कॉम्पोसाईट चार्ट कहलाता है। गणेशजी का मानना है कि कुंडली मिलाने में पारंपरिक तरीके के अलावा कॉम्पोसाईट चार्ट भी सफल वैवाहिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कॉम्पोसाईट चार्ट एक विधि है जिसमें एक कुंडली के प्रभाव की तुलना को दूसरे की कुंडली से की जाती है। जैसे- दूल्हे का लग्न तुला है और दुल्हन का मकर, ऐसे में वैवाहिक गठबंधन नहीं होना चाहिए क्योंकि दोनों एक दूसरे के वर्ग में हैं। इस कारण दोनों में विचारक मतभेद और संघर्ष होता रहेगा। दूसरी ओर अगर दूल्हा तुला लग्न में और दुल्हन कुंभ में हो तो उनका जीवन बहुत ही आनंदमय बितेगा क्योंकि दोनों की राशि में एक ही तत्व है -वायु।
दूसरी स्थिति में यदि दूल्हा अपना व्यवसाय करता है और दूल्हन का राहू और शनि दूल्हे के तीसरे घर को प्रभावित करता है तो शादी के बाद दूल्हे को व्यवसाय में हानि उठानी पड़ेगी।
आपसी शारीरिक आकर्षण के लिए दूल्हा के साथ ही दुल्हन का शुक्र अनुकूल स्थिति में होना चाहिए। अगर वे त्रिकोण में हैं तो यह अच्छा हो सकता है, अगर वे केन्र्द में होंगे तो यह प्रेम जीवन में तनाव का संकेत है। इसी तरह, युगल के लिए सामान्य खुशियां और दोनों के बीच मजबूत बंधन के लिए दोनों कुंडली में सप्तम भाव के मालिक के बीच अच्छे संबंध होने चाहिए।
इस तरह से संबंधों की अनुकूलता मिलाने की लम्बी सूची है जो कि कुंडली मिलाने के लिए अन्य भारतीय ज्योतिषों के बीच लोकप्रिय होने में थोड़ा समय ले सकता है। गणेशजी को विश्वास है कि पुरानी प्रणाली के साथ यदि कोम्पोसाईट चार्ट को प्रभावी तरीके से मिलाया जाए तो कुंडली मिलान और भी ज्यादा सटीक और विश्वसनीय हो सकता है।

मुहूर्त का महत्त्व 
दूल्हा दुल्हन के लिए सिर्फ कुंडली मिलाना ही सबकुछ नहीं है बल्कि विवाह के शुभ मुहूर्त भी सफल वैवाहिक जीवन के लिए बहुत मायने रखता है। अगर ग्रहों कि चाल सही नहीं है या लग्न को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं या मुहूर्त के सातवें घर में या फिर अगर चन्द्रमा शादी के समय पर बुरी तरह प्रभावित होता है तो खुशियां कम हो जाती हैं। चन्द्रमा को पाप ग्रह के नक्षत्र से नहीं गुजरना चाहिए या कम से कम उस राशि में नहीं होना चाहिए जो मजबूत पाप ग्रह – शनि, राहू और केतु के मार्ग में हो। मुहूर्त को पूरे भारत में उचित महत्त्व दिया जाता है।
कुंडली का मिलान तब अधिक प्रभावी और उपयोगी हो जाता है जब गणना में सभी कारकों पर विचार किया जाए। कुंडली मिलान के साथ ही उससे संबंधित विवरणों की उचित व्याख्या जरुरी है ताकि भविष्यवाणी सटीक हो। यह वैवाहिक जीवन में बड़े झटके को कम कर देता है। भारतीय संस्कृति में कुंडली मिलान बहुत ही सामान्य बात है। यह शायद लम्बे भारतीय वैवाहिक जीवन का एक मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कुंडली युगल के गुणों के मिलान का अनुपात जांचता है। यह गलत धारणा है कि कुंडली मिलान सिर्फ घरवालों कि मर्जी से की जानेवाली शादी के लिए ही जरुरी है। प्रेम विवाह के लिए भी यह नियम समान रूप से लागू होता है। यह रिश्ते की लम्बी उम्र की भविष्यवाणी करता है और उन कारकों पर विचार करता है जिसके बारे में लोग प्रेम में डूबे होने के कारण ध्यान नहीं देते। समय बीतने के साथ ही अब प्रेम विवाह में भी कुंडली मिलान की मांग की जाने लगी है, विशेष रूप से होनेवाले दूल्हा दुल्हन के माता पिता की ओर से यह मांग काफी होती है।

जन्मपत्रिका – जन्मकुंडली, जन्म राशि, जन्मपत्रिका ज्योतिषशास्त्र

जन्म कुंडली- अपने और अपने जीवन के बारे में पता करने का सबसे अच्छा तरीका है। किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली जन्म के समय ‘आकाश के नक्शे’ की तरह है। इसलिए जन्म के समय राशि चक्र में ग्रहों की स्थिति का व्यक्ति के जीवन पर प्रबल प्रभाव पड़ेगा। इसे ज्यादातर जन्मकुंडली के नाम से जाना जाता है। दूसरे नाम मूलांक और जन्मकाल भी हैं। जन्मकुंडली में सबसे पहले व्यक्ति के जन्म के समय का आर.ए.एम.सी. (Right Ascension of Meridian Cusp) की गणना की जाती है। इसके बाद स्थानीय समय पर आधारित जन्मकाल का लग्न तय किया जाता है। इन सबके बाद दिए हुए घर प्रणाली के आधार पर घरों की गणना की जाती है।

एक बार जब जन्म कुंडली तैयार हो जाए तो जन्म के समय ग्रहों की स्थिति की गणना करके उसे जन्मकुंडली में डाल दिया जाता है। वैदिक ज्योतिष में सारणी, अन्य प्रभागीय चार्ट और दशा भुक्ति की भी गणना की जाती थी जिसे व्यापक रूप से ग्रहों की अवधि के रूप में जाना जाता है। कुंडली तैयार है और अब भविष्य के बारे में बताया जा सकता है।

यहां आपको आश्चर्य हो सकता है कि जन्मकुंडली का लाभ क्या है? खैर, यह आपका सिर से पांव तक वर्णन करता है। ग्रहों की कोडित भाषा आप के भीतर और बाहर क्या है इसके बारे में संकेत देता है। यह व्यक्ति से संबंधित कुछ भी नापने का पैमाना है। संक्षेप में जन्मकुंडली व्यक्ति को भीतर बाहर जानने का एक शक्तिशाली उपकरण है। यदि आप उस व्यक्ति को अच्छी तरह जानते हैं तो आपको यह पता होगा कि उसके साथ आपको कैसा व्यवहार करना है और आप उस व्यक्ति को कैसे संभाल सकते है। कभी कभी, हम एक व्यक्ति से उसकी क्षमता से परे की उम्मीद कर लेते हैं। इससे दोनों को वैमनस्य और निराशा हो सकती है। लेकिन हम जन्मकुंडली से उस व्यक्ति का उज्ज्वल और कमजोर पक्ष जान सकते हैं और फिर उसके अनुसार बर्ताव कर सकते हैं। एक बेहतर और स्वस्थ समाज का विचार है, जो तभी संभव हो सकता है जब हमें व्यक्ति के सामर्थ्य का पता हो।

जन्मकुंडली जीवन की संभावित घटनाओं पर आधारित है। कुंडली इस बात की भविष्यवाणी करती है कि आपके भाग्य में क्या है और क्या नहीं है।जैसे कि, अगर कोई व्यक्ति किसी भी तरह की मास्टर डिग्री प्राप्त नहीं कर रहा है (जन्म कुंडली में उच्च शिक्षा 9वें घर में आता है), यहां तक कि ग्रहों की सर्वोत्तम गति या दशा भुक्ति कोई सहायता नहीं कर सकता। यदि ग्रहों की गति को जन्म के समय ग्रहों की अनुपस्थिति में देखा जाता है तो भविष्यवाणी गलत हो जाएगी। कुछ लोग जो लग्न की स्थिति पर विचार कर भविष्यवाणी शुरू कर देते हैं वे पूरी तरह से गलत हो सकते हैं। ग्रहों की स्थिति के साथ जन्म कुंडली को आपके लिए संभावित चीजों और परिस्थितियों के बुनियादी कारकों की आवश्यकता होती है।

जन्मकुंडली एक शक्तिशाली उपकरण है जिसपर यदि आप विश्वास करते हैं तो यह जीवन में सही दिशा चुनने में आपकी मदद कर सकती है। और यदि आप पहले से ही सही रास्ते पर हैं, तो जन्मकुंडली का पालन करके आसानी और ख़ुशी से लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। जन्मकुंडली को जानना खुद को बहुत अच्छी तरह से जानने के बराबर है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र – चंद्र ज्योतिषशास्त्र, चंद्र राशिफल, चंद्र राशि कुंडली

भारतीय ज्योतिष को चन्द्र ज्योतिष भी कहते हैं, इसकी उत्पत्ति वेदों से हुई है। भारतीय ज्योतिष में १२ राशियां हैं –
  • मेष
  • वृष
  • मिथुन
  • कर्क
  • सिंह
  • कन्या
  • तुला
  • वृश्चिक
  • धनु
  • मकर
  • कुंभ
  • मीन
राशियां बाद में विकसित हुई थीं. भारतीय ज्योतिष का आधार नक्षत्र हैं. कुल २७ नक्षत्र हैं. २८ वां नक्षत्र अभिजीत है जिसे कुंडली अध्ययन के समय शामिल नहीं किया जाता है।

वेद और शास्त्रों के अनुसार ५ तत्व माने गए हैं-
  • अग्नि
  • जल
  • पृथ्वी
  • वायु
  • आकाश
कुंडली अध्ययन के समय इन पांचों तत्वों के साथ ही नक्षत्र और राशियों को ध्यान में रखा जाता है। गगन या आकाश तत्व को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। किसी की भी कुंडली में लग्न सबसे प्रभावी माना जाता है, क्योंकि यह ‘स्व’ को सूचित करता है और इसपर आकाश तत्व का आधिपत्य होता है।

भारतीय ज्योतिष पद्धति नक्षत्र पर आधारित कैलेंडर का अनुसरण करता है। इसके केंद्र में चन्द्रमा होता है। चन्द्रमा मष्तिष्क और भावना पर नियंत्रण रखता है। राशियों में चन्द्रमा सबसे तेज चलनेवाला ग्रह है और इसके समर्थन के बिना कोई कार्य संभव नहीं हो सकता। जो पाश्चात्य ज्योतिष का ज्ञान रखते हैं उन्हें यह पता होगा कि वहां ‘वोईड ओफ़ कोर्स’ का सिद्धांत चलता है। इसका मतलब है कि यदि चन्द्रमा का कोई स्थान नहीं हो तो कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता। वैसे तो सभी ग्रह समान रूप से महत्व रखते हैं लेकिन चन्द्रमा को प्रमुख इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मष्तिष्क का नियंत्रक है।

दशा पद्धति – वैदिक ज्योतिष का एक प्रमुख भाग
जन्म की राशि, डिग्री, मिनट और सेकण्ड को भारतीय ज्योतिष में दशा माना जाता है जो व्यापक रूप से ग्रहों की अवधि के रूप में जाने जाते हैं। ये बाद में भी फ़ारसी ज्योतिष प्रणाली‘अल फिरदेरिया’ या ‘फिरदर’ के रूप में पाए गए। भारतीय ज्योतिष इसे बहुत सरल बनाता है क्योंकि हर चीज को समय के सूक्ष्म हिस्से में बांटा जा सकता है। ज्योतिष की सभी पद्धतियों में से भारतीय पद्धति में ही समय को सूक्ष्मतम इकाई में बांटने की क्षमता है, इसी कारण से यह अधिक सटीक माना गया है।

दशा पद्धतियां कई हैं पर उनमें से दो बहुत प्रचलित थीं- अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी लेकिन समय के साथ विंशोत्तरी दशा पद्धति ने सभी दशा पद्धतियों को आत्मसात कर लिया। विंशोत्तरी पद्धति ‘ट्राईन आस्पेक्ट्स्’ पर आधारित है। ट्राईन ऊर्जा उत्पन्न करता है और यह भाग्य पर नियंत्रण रखता है। इसलिए किसी के अच्छे या बुरे समय के बारे की भविष्यवाणि के लिए विंशोत्तरी सर्वश्रेष्ठ दशा पद्धति है।

ग्रहों की गति
वैदिक पद्धति में ग्रहों की गति को महत्व दिया जाता था क्योंकि वहां दशा पद्धति थी। बहुत से ज्योतिष दशा और गति को एकसाथ नहीं मिलाते क्योंकि ऐसा करना आवश्यक नहीं है।

वार्षिक भविष्यवाणी
वर्ष फल ताजिक नीलकंठ ने प्रारंभ किया था, बाद में वे भारतीय ज्योतिष का अनिवार्य अंग बन गए। पाश्चात्य ज्योतिष जो चन्द्रमा ज्योतिष की तरह ही है, इसमें एक विशेषता होती है जिसे ‘सोलर रिटर्न’ कहते हैं। लेकिन भारतीय ज्योतिष पद्धति स्नेह और वैरा दृष्टि जैसे पक्षों पर आधारित कई मापदंड हैं। इसी तरह, पश्चिमी सोलर रिटर्न में वे भाग्य और सफलता के हिस्से के लिए बहुत महत्व देते हैं. उसी प्रकार वहां चन्द्रमा ज्योतिष प्रणाली मेंसहम्स वार्षिक भविष्यवाणि में एक मुख्य भूमिका निभाता है। वर्षफल पद्घति में मुन्था का भी एक बहुत अच्छा भविष्य है।

संक्षेप में, भारतीय ज्योतिष, इस महान और सटीक ज्योतिष विज्ञान के गहरे ज्ञान से बना हुआ है जो भविष्य के बारे में पहले ही बता सकता है और समस्याएं पैदा होने से पहले सावधानी बरत लेता है।

जय रघुनंदन जय सियाराम

रामनाम अमृत का प्याला अमर हो गया इसको पीने वाला
रामनाम के अंकित से ही जल में पत्थर तैर सकते है
रामनाम से ही रामबाण से हनुमानजी की रक्षा हो सकती है
इसलिए कहते राम से बडा है राम का नाम सब जपलो अविराम राम जी का नाम
जय जय राम जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम
जय रघुनंदन जय सियाराम